मेरे हुस्न पर शे'र कहें , देखो हुस्न
फ़रमाते हैं
वो फ़न को आज़माते हैं कि मुझको आजमाते हैं
कहीं फिसल न क़लम जाए मेरा उनके सरापे
में
अजी लिखने से पहले यार सौ बार घबराते हैं
देख लिया रूप वो भी शायरी के ही बहाने जी
तमन्ना में ही जिनकी चाँद - सूरज आते-जाते
हैं
हो ख़ुशक़िस्मत ऐ लफ्ज़ हसीं जो छुए हो
बदन उनके
जहाँ जाने से मेरे ख़्वाब भी यार शरमाते
हैं
पूछा उनसे कि किस उज़्व पर है उनको नाज़
ज़ियादा
साँसों के उठते - गिरते से इशारों में
बताते हैं
( ‘ बिहार उर्दू अकादमी ’
द्वारा 07-07-12 को उर्दू भवन , पटना में आयोजित मुशायरा में पढ़ी गई
ग़ज़ल .... )
.