यक़ीनन ही मुहब्बत है
(बहरे-हजज-मुसम्मन-सालिम)
वही रुत है मगर आज फ़जाओं में इक मसर्रत१ है
हवा अटखेलियाँ करती या शाखों की शरारत है
जी करता है बेवज़ह सही जी भर उनकी करूँ बातें
ज़माने को ज़िक्रे दिलबर से जाने क्यों शिकायत है
सुना था आदमी पर जादू का भी असर पड़ता है
न मानो यार तुम पर ये मुद्दआ इक हक़ीकत है
कर रहे हो रश्क़ क्यों तुम इस तरह मेरी किस्मत से
थी कल तक संग तेरी वो मगर अब मेरी किस्मत है
जो देखा आपकी मख़मूर२ आँखों में अक़्श अपना
न संवरने से मतलब ना आईने की ज़रूरत है
इक सुरूर ख़ुशी का मुझ पे यूँ ही छाया सा रहता है
मेरे दोस्तों को मेरे रुख़ पे दिखती इक सबाहत३ है
हसीं परछाईं कोई बारहा४ आ जाये ख़्वाबों में
"विभूति" समझ जरा ये तो यक़ीनन ही मुहब्बत है
१.ख़ुशी,२.नशीली,३.सुन्दरता,४.प्रायः