संवेदनाएं एक संवेदनशील व्यक्ति पर अपना असर छोड़ती हैं. इन संवेदनाओं के अलावा व्यक्ति का अपना अनुभव एवं अध्धयन भी उसकी अभिव्यक्ति को परिमार्जित करता है. और यह अभिव्यक्ति साहित्य की कई विधाओं में प्रतिबिंबित होती है. इनमें सबसे मीठी, हृदयस्पर्शी और सुकुन देनेवाली विधा को भावुक हृदय " ग़ज़ल " कहते हैं. मैं भी ग़ज़ल कहने का साहस जुटा रहा हूँ. आशा है आपका मार्गदर्शन मिलेगा.
Tuesday, October 5, 2010
Monday, October 4, 2010
रात के आलम से पूछो
रात के आलम से (बहरे-रमल-मुसम्मन-सालिम)
रात के आलम से पूछ शमा जली या फिर हम जले
थम गईं तो सौ बार धड़कने फिर भी न दम निकले
हँसता है ये ज़माना यूँ देख शिकस्त अब मेरी
फ़ासिले उतने बढ़े जितने क़दम उनकी ओर चले
ज़िन्दगी की धूप में ना जाने झुलसे किस क़दर हम
आख़िरी तो शाम गुजरे उनकी ज़ुल्फ़ें रेशम तले
रात के आलम से पूछ शमा जली या फिर हम जले
थम गईं तो सौ बार धड़कने फिर भी न दम निकले
रोज़ तो दोस्त रहते हैं बारहा मेरे पास घिरे
छोड़ जाते सारे तनहा मुझको तो ज्यों ही शाम ढले
हँसता है ये ज़माना यूँ देख शिकस्त अब मेरी
फ़ासिले उतने बढ़े जितने क़दम उनकी ओर चले
खाली ना होता ख़ज़ाना दर्द और ख़लिश का मेरा
इक नया वो ज़ख़्म दे जाते जो भरने लगते पहले
ज़िन्दगी की धूप में ना जाने झुलसे किस क़दर हम
आख़िरी तो शाम गुजरे उनकी ज़ुल्फ़ें रेशम तले
.
Subscribe to:
Posts (Atom)