यक़ीनन ही मुहब्बत है
(बहरे-हजज-मुसम्मन-सालिम)
वही रुत है मगर आज फ़जाओं में इक मसर्रत१ है
हवा अटखेलियाँ करती या शाखों की शरारत है
जी करता है बेवज़ह सही जी भर उनकी करूँ बातें
ज़माने को ज़िक्रे दिलबर से जाने क्यों शिकायत है
सुना था आदमी पर जादू का भी असर पड़ता है
न मानो यार तुम पर ये मुद्दआ इक हक़ीकत है
कर रहे हो रश्क़ क्यों तुम इस तरह मेरी किस्मत से
थी कल तक संग तेरी वो मगर अब मेरी किस्मत है
जो देखा आपकी मख़मूर२ आँखों में अक़्श अपना
न संवरने से मतलब ना आईने की ज़रूरत है
इक सुरूर ख़ुशी का मुझ पे यूँ ही छाया सा रहता है
मेरे दोस्तों को मेरे रुख़ पे दिखती इक सबाहत३ है
हसीं परछाईं कोई बारहा४ आ जाये ख़्वाबों में
"विभूति" समझ जरा ये तो यक़ीनन ही मुहब्बत है
१.ख़ुशी,२.नशीली,३.सुन्दरता,४.प्रायः
Reply by Navin C. Chaturvedi on December 4, 2010 at 1:29pm on "Open Books Online".
ReplyDeleteलफ़्ज़ों की रवानी और ख़यालों की ताज़गी देखने लायक है|
खास कर ये हिस्से ज़्यादा अच्छे लगे:-
.........उनके नाम से ज़माने को, जाने क्यों शिकायत है
सुना था आदमी पर, जादू का................
देखा जो उनकी मखमूर आँखों, में अक्स.............
बहुत बहुत बधाई विभूति कुमार जी| आनंद आ गया|
भाई /
ReplyDeleteमेरी उर्दू शब्दकोष बहुत कमज़ोर है ...
मगर आपके द्वारा शब्दों का चयन
बड़े ही दिलकश जुबां में किया गया है
वैसे भी ग़ज़ल को स्वर दी जाए
तो वह अपने पुरे रवानी में आता है /
लिखते रहे / बिहार .... की धरती उर्वर है
धन्यवाद ! मेरा शब्द चयन आपको पसंद आया. यक़ीनन बिहार की धरती तो ऊर्वर है लेकिन माहौल में कुछ कमी नज़र आती है.
ReplyDeleteरही बात मेरी ग़ज़लों को स्वर देने का ------ तो देखें ग़ज़लों को स्वर कब मिलता है .
wah wah wah vibhuti ji
ReplyDeletedil khush ho gaya
aapki ye gazal to dil ki gahrayi tak chhu gayi
and d lines i liked most are
"dekha jo unki makhmoor aankhon me aks apna,
na sanwrne se raha matlab na aaine ki jarurat h"
तरल भावनाओं की मोहक अभिव्यक्ति . भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ और उतना ही शब्दों का सुन्दर प्रवाह. प्रशंसनीय ग़ज़ल है यह
ReplyDeleteमुहब्बत चीज ही ऐसी है कि इसपर जितना लिखा जाय कम है .... एक प्रयास मैनें भी किया ... मुझे खुशी है कि आपको यह ग़ज़ल पसन्द आयी ..धन्यवाद..
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