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Sunday, July 8, 2012

मेरे हुस्न पर शे'र कहें





मेरे  हुस्न  पर शे'र  कहें , देखो  हुस्न  फ़रमाते हैं
वो  फ़न  को आज़माते हैं  कि मुझको आजमाते हैं

कहीं  फिसल  न क़लम  जाए  मेरा उनके सरापे में
अजी  लिखने  से  पहले  यार   सौ बार घबराते हैं

देख  लिया  रूप  वो  भी शायरी  के  ही बहाने जी
तमन्ना  में  ही जिनकी  चाँद - सूरज  आते-जाते हैं

हो ख़ुशक़िस्मत ऐ लफ्ज़ हसीं जो छुए हो बदन उनके
जहाँ  जाने  से  मेरे  ख़्‍वाब  भी  यार  शरमाते  हैं

पूछा उनसे कि किस उज़्व पर है उनको नाज़ ज़ियादा
साँसों  के उठते - गिरते  से  इशारों  में  बताते  हैं


( बिहार उर्दू अकादमी द्वारा 07-07-12 को उर्दू भवन , पटना में आयोजित मुशायरा में पढ़ी गई ग़ज़ल  .... ) 

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4 comments:

  1. heartiest congratulation ... Vibhuti bhai

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  2. जी , बहुत-बहुत शुक्रिया .....

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  3. हुश्न पर शेर कहने की फरमाइश को बखूबी पूरा किया आपने . सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. किशोर जी धन्यवाद ...... दिलकश बात तो यह है कि यह ग़ज़ल तसव्वुर पर नहीं बल्कि एक सच्ची घटना पर आधारित है ...

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